Saturday, December 12, 2020

DharanTakhta

राष्ट्रवाद के नाम पर फैलायी जा रही है फ़ेक न्यूज़

आपके फ़ोन के व्हाट्सऐप ग्रुप में भी ऐसे मैसेज आते होंगे "सभी भारतीयों को बधाई! यूनेस्को ने भारतीय करेंसी को सर्वश्रेष्ठ करेंसी घोषित किया है, जो सभी भारतीय लोगों के लिए गर्व की बात है."

ये मैसेज और इस तरह के कई दूसरे मैसेज फ़ेक होते हैं लेकिन उन्हें फ़ॉरवर्ड करने वाले लोग सोचते हैं कि वो 'राष्ट्र निर्माण' में अपनी भूमिका निभा रहे हैं.


बीबीसी के एक नए रिसर्च में ये बात सामने आई है कि लोग 'राष्ट्र निर्माण' की भावना से राष्ट्रवादी संदेशों वाली फ़ेक न्यूज़ को साझा कर रहे हैं. राष्ट्रीय पहचान ख़बरों से जुड़े तथ्यों की जांच की ज़रूरत पर भारी पड़ रहा है.

रिपोर्ट की मुख्य बातें

  • बीबीसी ने भारत, कीनिया और नाइजीरिया में व्यापक रिसर्च किया है.
  • ये रिपोर्ट विस्तार से समझाती है कि कैसे इनक्रिप्टड चैट ऐप्स में फ़ेक न्यूज़ फैल रही है.
  • ख़बरों को साझा करने में भावनात्मक पहलू का बड़ा योगदान है.
  • Beyond Fake news ग़लत सूचनाओं के फैलाव के ख़िलाफ़ एक अंतरराष्ट्रीय पहल है.

इस रिसर्च में ट्विटर पर मौजूद कई नेटवर्कों का भी अध्ययन किया गया और इसका भी विश्लेषण किया गया है कि इनक्रिप्टड मैसेज़िंग ऐप्स से लोग किस तरह संदेशों को फैला रहे हैं.

बीबीसी की इस रिसर्च में मदद करने के लिए कुछ मोबाइल यूजर्स ने अपने फोन का एक्सेस दिया.

ये रिसर्च बीबीसी के Beyond Fake News प्रोजेक्ट के तहत किया गया है, जो ग़लत सूचनाओं के ख़िलाफ़ एक अंतरराष्ट्रीय पहल है.



इस शोध से पता चला कि भारत में लोग उस तरह के संदेशों को शेयर करने में झिझक महसूस करते हैं जो उनके मुताबिक़ हिंसा पैदा कर सकते हैं. लेकिन यही लोग राष्ट्रवादी संदेशों को शेयर करना अपना फ़र्ज़ समझते हैं.

भारत की तरक्की, हिंदू शक्ति और हिंदुओं की खोई प्रतिष्ठा की दोबारा बहाली से जुड़े संदेश, तथ्यों की जांच किए बिना बड़ी संख्या में शेयर किए जा रहे हैं. ऐसे संदेशों को भेजने वालों को लगता है कि वो राष्ट्र निर्माण का काम कर रहे हैं.

फ़ेक न्यूज़

कीनिया और नाइजीरिया में भी फ़ेक न्यूज़ फैलाने के पीछे लोगों की 'फ़र्ज़ की भावना' सामने आई.

लेकिन इन दोनों देशों में राष्ट्र निर्माण की भावना की बजाय ब्रेकिंग न्यूज़ को साझा करने की भावना ज़्यादा होती है ताकि कहीं अगर वो ख़बर सच हुई तो वह उनके नेटवर्क के लोगों को प्रभावित कर सकती है. सूचनाओं को हर किसी तक पहुँचाने की भावना यहां दिखाई पड़ती है.



मैसेज़ फॉरवर्ड करना कर्तव्य

फे़क न्यूज़ या बिना जाँच-परख के ख़बरों को आगे बढ़ाने वाले लोगों की नज़र में मैसेज या ख़बर के सोर्स से ज़्यादा अहमियत इस बात की है कि उसे उन तक किसने फ़ॉरवर्ड किया है.

अगर फ़ॉरवर्ड करने वाला व्यक्ति समाज में 'प्रतिष्ठित' है तो बिना जांचे-परखे या उस जानकारी के स्रोत का पता लगाए बिना उसे आगे पहुंचाने को वे अपना 'कर्तव्य' समझते हैं.

जिस तरह की ग़लत ख़बरें सबसे ज़्यादा फैलती हैं उनमें, भारत तेज़ी से प्रगति कर रहा है, हिंदू धर्म महान था और अब उसे दोबारा महान बनाना है, या भारत का प्राचीन ज्ञान हर क्षेत्र में अब भी सर्वश्रेष्ठ है अथवा गाय ऑक्सीजन लेती है, और ऑक्सीजन ही छोड़ती है जैसी ख़बरें सबसे ज़्यादा सामने आती हैं. ऐसी ख़बरों को लोग हज़ारों की तादाद में रोज़ शेयर करते हैं और इसमें कोई बुराई नहीं देखते कि वे अपने मन की बात को सही साबित करने के लिए तथ्यों का नहीं बल्कि झूठ का सहारा ले रहे हैं.



मुख्यधारा मीडिया की साख

फे़क न्यूज़ के फैलाव में मुख्यधारा के मीडिया को भी ज़िम्मेदार पाया गया है.

रिसर्च के मुताबिक़, इस समस्या से निबटने में मीडिया इसलिए बहुत कारगर नहीं हो पा रहा है क्योंकि उसकी अपनी ही साख बहुत मज़बूत नहीं है, लोग मानते है कि राजनीतिक और व्यावसायिक हितों के दबाव में मीडिया 'बिक गया' है.

बीबीसी ने फे़क न्यूज़ फ़ैलाने वालों के वैचारिक रुझान को ट्विटर पर 16 हज़ार अकाउंट्स के ज़रिए जांचा तो ये बात सामने आई कि मोदी समर्थकों के तार आपस में बेहतर ढंग से जुड़े हुए हैं और वे एक तरह से मिल-जुलकर एक अभियान की तरह काम कर रहे हैं.



हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, मोदी, सेना, देशभक्ति, पाकिस्तान विरोध, अल्पसंख्यकों को दोषी ठहराने वाले अकाउंट आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. वे एक ख़ास तरह से सक्रिय रहते हैं जैसे वे कोई कर्तव्य पूरा कर रहे हों.

इसके विपरीत, बंटे हुए समाज में इनके विरोधियों की विचारधारा अलग-अलग है, मगर मोदी या हिंदुत्व की राजनीति का विरोध उन्हें जोड़ता है.

अलग-अलग विचारों के कारण मोदी विरोधियों की आवाज़ मोदी समर्थकों की तरह एकजुट नहीं है.



व्हाट्सऐप पर हिंदू राष्ट्रवाद

कमोबेश यही तस्वीर व्हाट्सऐप पर भी उभरती है.

हिंदू राष्ट्रवाद की ओर रुझान रखने वाले लोगों को मोटे तौर पर तीन वर्गों में बांटा जा सकता है.

पहला, पुरातनपंथी हिंदू जो किसी भी तरह के सामाजिक बदलाव के विरोधी हैं.

इमेज स्रोत,GETTY IMAGEदूसरा, प्रगतिशील हिंदू जो अंधभक्त नहीं है, अपने धर्म को लेकर उसे गर्व है और उसे धर्म का झंडा ऊंचा रखने की चिंता रहती है.

ये दोनों वर्ग मोदी को अपना नेता मानते हैं. तीसरा वर्ग सीधे तौर पर कट्टरपंथी है जो अल्पसंख्यकों के प्रति उग्र और हिंसक विचार रखता है.

मोदी विरोधी चार वर्गों में बंटे हैं. नोटबंदी, जीएसटी जैसी नीतियों का विरोध करने वाला एक वर्ग है, दूसरा वर्ग अल्पसंख्यकों का है जिसके विरोध का कारण उग्र हिंदुत्व की राजनीति है.

तीसरा वर्ग उन लोगों का है जिन्होंने मोदी को वोट दिया मगर अब निराश हैं. चौथा वर्ग कांग्रेस जैसे राजनीतिक विरोधियों का है.

मोदी विरोधी सोशल मीडिया पर भी उसी तरह से बिखरे नज़र आते हैं जैसे देश की राजनीति में.

टीम की तरह काम करते हैं मोदी समर्थक

ट्विटर के आंकड़ों पर गहराई से नज़र डालने पर बीबीसी की रिसर्च टीम ने पाया कि ट्विटर पर मोदी समर्थक गतिविधियों में लगे लोग और फे़क न्यूज़ फैलाने वाले कुछ अकाउंटों के तार जुड़े हुए हैं. वे एक समूह की तरह काम करते हैं.

दूसरी ओर, मोदी विरोधी समूह भी फ़ेक न्यूज़ फैलाता है लेकिन उसकी संख्या और उनकी सक्रियता तुलनात्मक तौर पर कम है और वे विपक्षी राजनीतिक नेतृत्व से उस तरह जुड़े हुए नहीं हैं जिस तरह हिंदुत्व वाले लोग हैं.

रिसर्च से पता चला है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ट्विटर अकाउंट कुछ ऐसे लोगों को फ़ॉलो करता है जो फे़क न्यूज़ फैलाते हैं.

प्रधानमंत्री मोदी का ट्विटर हैंडल @narendramodi जितने अकाउंट को फ़ॉलो करता है उनमें से 56.2% वेरिफाइड नहीं हैं, यानी ये वो लोग हैं जिनकी विश्वसनीयता पर ट्विटर ने नीले निशान के साथ मुहर नहीं लगाई है, ये लोग कोई भी हो सकते हैं.

इन बिना वेरिफ़िकेशन वाले अकाउंट में से 61% बीजेपी का प्रचार करते हैं. ये अकाउंट बीजेपी के नज़रिए को ट्विटर पर रखते हैं.

बीजेपी का दावा रहा है कि ट्विटर पर इन अकाउंट को फ़ॉलो कर प्रधानमंत्री आम आदमी से जुड़ते हैं, हालांकि ये अकाउंट कोई मामूली नहीं हैं. इन अकाउंट के औसत फ़ॉलोअर 25,370 हैं और इन्होंने 48,388 ट्वीट किए हैं.

प्रधानमंत्री इन अकाउंट को फॉलो करके उन्हें एक तरह की मान्यता प्रदान करते हैं, इनमें से ज़्यादातर लोग जिन्हें ट्विटर ने मान्यता नहीं दी है, वे अपने परिचय में लिखते हैं कि देश के प्रधानमंत्री उन्हें फ़ॉलो करते हैं.

इसके उलट कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी 11% बिना वेरीफिकेशन वाले अकाउंट फ़ॉलो करते हैं, वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मामले में ये आंकड़ा 37.7% है.



फ़ेक न्यूज़ पर क्या सोचता है आम आदमी

बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में ऑडियंस रिसर्च विभाग के प्रमुख डॉक्टर शांतनु चक्रवर्ती कहते हैं, "इस रिसर्च में यही सवाल है कि आम लोग फ़ेक न्यूज़ को क्यों शेयर कर रहे हैं जबकि वे फ़ेक न्यूज़ के फैलाव को लेकर चिंतित होने का दावा करते हैं. ये रिपोर्ट इन-डेप्थ क्वॉलिटेटिव और इथनोग्राफ़ी की तकनीकों के साथ-साथ डिजिटल नेटवर्क एनालिसिस और बिग डेटा तकनीक की मदद से भारत, कीनिया और नाइजीरिया में कई तरह से फ़ेक न्यूज़ को समझने का प्रयास करती है. इन देशों में फ़ेक न्यूज़ के तकनीक केंद्रित सामाजिक स्वरूप को समझने के लिए ये पहला प्रोजेक्ट है. मैं उम्मीद करता हूं कि इस रिसर्च में सामने आई जानकारियां फ़ेक न्यूज़ पर होने वाली चर्चाओं में गहराई और समझ पैदा करेगी और शोधार्थी, विश्लेषक, पत्रकार इन जानकारियों का इस्तेमाल कर पाएंगे. "

वहीं, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ग्रुप के निदेशक जेमी एंगस कहते हैं, "मीडिया में ज़्यादातर चर्चा पश्चिमी देशों में 'फ़ेक न्यूज़' पर ही हुई है, ये रिसर्च इस बात का मज़बूत सबूत है कि बाक़ी दुनिया में कई गंभीर समस्याएं खड़ी हो रही हैं, जहां सोशल मीडिया पर ख़बरें शेयर करते समय राष्ट्र-निर्माण का विचार सच पर हावी हो रहा है. बीबीसी की Beyond Fake news पहल ग़लत सूचनाओं के फैलाव से निपटने में हमारी प्रतिबद्धता की ओर एक अहम क़दम है. इस काम के लिए ये रिसर्च महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराता है."

फ़ेसबुक, गूगल और ट्विटर सोमवार को (आज) अपने-अपने प्लेटफॉर्म्स पर फे़क न्यूज़ के बारे में चर्चा करेंगे.

इस रिसर्च रिपोर्ट पर आज ही बीबीसी दिल्ली समेत देश के सात शहरों में अलग-अलग भाषाओं में चर्चा आयोजित कर रहा है.

दिल्ली में हो रही चर्चा का प्रसारण बीबीसी वर्ल्ड सर्विस पर भारतीय समयानुसार रात के साढ़े नौ बजे होगा.

-From-बीबीसी रिसर्च #BeyondFakeNews


Tuesday, February 28, 2012